ओंकोरश्वर मंधाता पर्वत पर अष्टधातु से निर्मित 108 फीट ऊंची आचार्य शंकर की प्रतिमा का अनावरण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। इससे पहले सैकड़ों संतों ने 21 कुंडीय महायज्ञ में भाग लिया और पूरे विधि विधान से यह कार्य संपन्न हुआ। एकात्मता की मूर्ति का अनावरण और अद्वैत लोक का भूमि एवं शिला पूजन दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदापीठ के मार्गदर्शन में हुआ। सनातन के ध्वजवाहक आचार्य शंकर के व्यक्तित्व और उनके सिद्धांतों को लेकर नया विमर्श ओंकारेश्वर की भूमि से एक बार फिर शुरु हो रहा है। 

21 कुंडीय यज्ञ में सैकड़ों संतों की रही भागीदारी 
नर्मदा नदी के तट पर मंधाता पर्वत पर आचार्य शंकर की 108 फीट ऊंची मूर्ति के अनावरण से पहले उत्तरकाशी के स्वामी ब्रहोन्द्रानन्द तथा 32 संन्यासियों द्वारा प्रस्थानत्रय भाष्य पारायण और दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदापीठ के मार्गदर्शन में देश के लगभग 300 विख्यात वैदिक आर्चकों द्वारा वैदिक रीति पूजन तथा 21 कुंडीय हवन किया गया। 

अद्वैतमय हुआ ओम्कारेश्वर
मुख्यमंत्री ने आदि शंकराचार्य जी की ज्ञान भूमि ओम्कारेश्वर में 108 फीट ऊंची भव्य और दिव्य प्रतिमा ’एकात्मता की मूर्ति’ का अनावरण एवं “अद्वैत लोक” का शिलान्यास किया। अपने संबोधन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित आचार्य शंकर के श्रीचरणों में ही शुभता और शुभत्व है। संपूर्ण जगत के कल्याण का सूर्य अद्वैत के मंगलकारी विचारों में ही निहित है।

संपूर्ण विश्व को “एकात्मता“ का संदेश दे रहा मध्यप्रदेश
एकात्मकता का प्रतीक इस प्रतिमा को स्टैच्यू ऑफ वननेस का नाम दिया गया है। आदि शंकराचार्य जी की प्रतिमा में 12 साल के आचार्य शंकर की झलक नजर आ रही है। दरअसल, ओंकारेश्वर आचार्य शंकर की ज्ञान भूमि और गुरु भूमि है। यहीं उनको गुरु गोविंद भगवत्पाद मिले। आचार्य शंकर ने यहां पर चार वर्ष रहकर  विद्या अध्ययन किया। चार वर्ष तक ज्ञान अर्जित करने के बाद केवल 12 वर्ष की आयु में वे ओंकारेश्वर से ही अखंड भारत में वेदांत के लोकव्यापीकरण के लिए प्रस्थान किया था। इसलिए मान्धाता पर्वत पर 12 वर्ष के आचार्य शंकर की प्रतिमा की स्थापना की गई।